पिछले 3-4 सालों से गुलाबी सुंडी या इल्ली का हर साल फसल पर हमला देखने को मिल रहा है. इसके शुरू में ही कंट्रोल करना पड़ता है. अगर इस कीट को लेकर किसान जरा सी भी लापरवाही करते हैं तो पूरी फसल चौपट हो सकती है. महाराष्ट्र में इसका ज्यादा असर देखने को मिलता है। कपास की फसल पर पिछले साल गुलाबी इल्ली (पिंक बालवर्म) का ऐसा कहर बरपा कि किसानों की उम्मीद तार-तार हो गई। gulabi illi ( pink bollworm) ki Dawai
न कपास के फल (घेटे) में छेद हुआ, न बाहर से इसका आभास हुआ और फल के अंदर ही अंदर इल्ली पनप गई। फल ही नहीं और उसके अंदर कपास खराब हो गया। पौधों पर फल खूब दिख रहे थे, लेकिन घेटा फूटकर कपास नहीं बन पा रहा था। दबे पांव आई इस आफत से कपास की करीब 20 फीसदी फसल बर्बाद गयी। सोसिएशन ऑफ कॉटन प्रोसेसर एंड ट्रेडर्स के मुताबिक अकेले महाराष्ट्र में करीब 800 से 900 करोड़ के नुकसान का अनुमान है।
पिछले वर्ष किसानों को सबसे ज्यादा जिस गुलाबी इल्ली ने नुकसान पहुंचाया, वह फिर सक्रिय हो गई है। इस साल कपास के खेतों में पिंक बॉलवर्म या गुलाबी इल्ली (Pink Bollworm-PBW) का असर दिखाई देने से किसान परेशान हैं. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, गुलाबी बॉलवर्म कपास का सबसे बड़ा दुश्मन कीट है. यह कीड़ा अपना पूरा जीवन कपास पर ही पूरा करता है और यह छोटे पौधे से लेकर कली, फूल तक को खाकर उसे नुकसान पहुंचाता है.
गुलाबी इल्ली, कपास की फसल को फूल लगने के चरण में प्रभावित करता है और अपने जीवनचक्र का एक बड़ा हिस्सा कपास के टिंडे के भीतर पूरा करता है।गुलाबी इल्ली के लार्वे कपास के बीजों को खाने के लिये कपास के टिंडे में छेद कर देते हैं। इससे कपास की गुणवत्ता घटती है और किसान को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
गुलाबी इल्ली के कारण कलियों का न खुल पाना, बीजकोष का गिरना, रेशों को क्षति और बीज हानि होती है। गर्मी की शुरुआत में, लार्वा की पहली पीढ़ी कलियां खाती है जो वृद्धि करके फूल बन जाती हैं। संक्रमित फूलों की पंखुड़ियां लार्वा के सिल्क धागे से एक-दूसरे से बंधी हो सकती हैं। दूसरी पीढ़ी के लार्वा बीजों तक पहुंचने और उन्हें खाने के लिए बीजकोष और रेशों को खाते हुए आगे बढ़ते हैं। रेशा कट जाता है और उसमें दाग़ लग जाता है जिससे गंभीर गुणवत्ता हानि होती है। अंडप दीवारों (कार्पल दीवारों) के अंदर की तरफ गांठों के रूप में बीजकोषों पर क्षति स्पष्ट दिखती है। इसके अलावा, गुलाबी इल्ली के मामले में अक्सर लार्वा बीजकोष को खोखला नहीं करते और बाहर कीटमल छोड़ते हैं। मौकापरस्त जीव जैसे कि बीजकोष गलाने वाला कवक (बॉल रॉट) अक्सर लार्वा के प्रवेश और निकास छिद्रों से बीजकोषों को संक्रमित करता है।
कपास की कलियों और बीजकोषों को क्षति का कारण गुलाबी इल्ली पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला का लार्वा है। वयस्कों का रंग और आकार अलग-अलग होता है लेकिन आम तौर पर वे चित्तीदार धूसर से धूसर-भूरे होते हैं। वे दिखने में लंबे पतले और भूरे से होते हैं, अंडाकार पंख झालरदार होते हैं। मादाएं कलियों के सहपत्रों के अंदर की तरफ या हरे बीजकोषों की कर्णिका (कैलिक्स) के नीचे अकेले अंडे देती हैं। अंडों से आम तौर पर 4 से 5 दिन में लार्वा बाहर निकल आते हैं और तुरंत कलियों या बीजकोषों में घुस जाते हैं। तरुण लार्वा का सिर गहरा-भूरा और शरीर सफ़ेद होता है। पीठ पर गुलाबी आड़ी धारियां होती हैं। बढ़ने पर वे धीरे-धीरे गुलाबी दिखने लगते हैं। बीजकोषों को खोलकर देखने पर वे अंदर खाते हुए देखे जा सकते हैं। प्यूपा बनने से पहले लार्वा करीब 10 से 14 दिन खाता है। प्यूपा आम तौर पर बीजकोष के बजाय मिट्टी के अंदर बनता है। मध्यम से उच्च तापमान गुलाबी इल्ली के विकास को बढ़ावा देता है। हालांकि 37.5° सेल्सियस के ऊपर मृत्यु दर बढ़नी शुरू हो जाती है।
जैविक नियंत्रण
बुआई के 45 दिनों के बाद या पुष्पीकरण के चरण में फेरोमोन ट्रैप (8प्रति एकड़) को स्थापित करें और फसल खत्म होने के समय तक जारी रखें। ट्रैप के चारे को 21 दिनों के अंतराल बदल दें।
रासायनिक नियंत्रण
गुलाबी इल्ली के लिए सबसे अच्छा कीटनाशक – डेनिटोल
डेनिटोल एक ऐसी तकनीक से बना प्रोडक्ट है जो गुलाबी सुंडी (इल्ली) पर पूरी तरह नियंत्रण करता है। दोस्तों गुलाबी सुंडी या इल्ली आपके कपास के टिंडे में नुकसान करना शुरू करती है और शुरुवाती दौर में ये कपास के फूल पर पायी जाती है। ये फूल से कपास के परागकण खाने के साथ-साथ जैसे ही कपास का टिंडा तैयार होता है ये उसके अंदर चली जाती है और टिंडे के अंदर के कपास के बीज को खाना शुरू कर देती है। इस कारण कपास का टिंडा अच्छी तरह से तैयार नहीं हो पाता है और कपास में दाग लग जाता है जिससे कई बार जब हम टिंडे से कपास निकालते है तो काला कपास निकलता है जो बाजार में बेचने लायक नहीं होता। इसी कारण गुलाबी सुंडी या इल्ली जब भी नुकसान पहुंचाती है हमें पूरा टिंडा खोना पड़ता है और हमारी फसल की उपज को नुकसान पहुंचता है।
डेनिटोल का उपयोग कैसे करे
आइये अब हम जानते की डेनिटोल का उपयोग कपास की फसल में कैसे करना है। गुलाबी सुंडी या इल्ली के रोकथाम के लिए आपको डेनिटोल के कम से कम 3 छिड़काव करने होंगे, आइये जानते है की ये छिड़काव आपको कब और कितनी मात्रा में करने है। कपास की बुआई के 40 से 45 दिन में कपास की फसल में फूल अवस्था पाई जाती है। जैसे ही आपके कपास में 20 से 30% फूल आना शुरू हो जाता है उसी दौरान आपको 15 लीटर पानी में 40 मिली डेनिटोल लेकर उसका छिड़काव आपको अपनी कपास की फसल पर पहला छिड़काव करना है। इस पहले छिड़काव के बाद आपको डेनिटोल का दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 13 से 15 दिन के बाद करना है। इस छिड़काव की मात्रा भी 40 मिली प्रति 15 लीटर पानी में ही रहेगी। तीसरा छिड़काव आपको दूसरे छिड़काव के 15 दिन बाद करना है इस छिड़काव की मात्रा भी 40 मिली प्रति 15 लीटर पानी में ही रहेगी।
डेनिटोल इस्तेमाल करने के फायदे
भारत के कई प्रदेशो में किसानो ने डेनिटोल का इस्तेमाल करके गुलाबी इल्ली या सुंडी से 100 प्रतिशत छुटकारा पाया है ज्यादा जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट www.danitolindia.com देखे और निचे दिए गए वीडियो को अच्छी तरह से देखे।
निवारक उपाय
- कपास की जल्द परिवक्व होने वाली किस्में इस्तेमाल करें
- कीट के लक्षणों के लिए कपास के पौधों की नियमित निगरानी करें. आबादी का अनुमान लगाने के लिए फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें
- आबादी कम करने के लिए सर्दियों और बसंत में सिंचाई की उचित योजना बनाएं.
- उदाहरण के लिए खेत में पानी भर (फ्लडिंग) सकते हैं.
- गर्मियों में खेत को खाली छोड़ दें.
- फसल चक्र बदलकर (उदाहरण के लिए खाद्यान्न या अल्फ़ाल्फा) खेत को करीब 7 महीने कपास मुक्त रखें.
- कीट की अधिक आबादी से बचने के लिए जल्द फ़सल काट लें
- कटाई के तुरंत बाद पौधों के अवशेषों को नष्ट कर दें.
- कीटनाशकों का उचित इस्तेमाल करें ताकि शिकारी प्रभावित न हों और प्रतिरोध का विकास होने से बचा जा सके।